जी, आत्‍ममुग्‍धता भी बीमारी है

जी, आत्‍ममुग्‍धता भी बीमारी है

के. संगीता

इतिहास में नारसिस नाम के एक राजा का जिक्र आता है जो एक बार पानी में अपनी छवि देखने के बाद स्‍वयं पर ही मो‍हित हो गया। उसका सारा समय अपनी प्रशंसा करने में ही बीत जाता था। नारसिस के नाम पर ही नारस्सिटिक पर्ससनैलिटी डिस्‍आर्डर का नाम रखा गया है।

यूं तो अपनी प्रशंसा सुनना किसे अच्‍छा नहीं लगता है। हम सभी ये चाहते हैं कि लोग हमें सर्वगुण सम्‍पन्‍न समझें लेकिन इस डिस्‍आर्डर से ग्रसित व्‍यक्ति आत्‍ममुग्‍ध होते हैं और केवल स्‍वयं को ही सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण मानते हैं। अपने अलावा वे दूसरे सभी लोगों को तुच्‍छ समझते हैं। वे स्‍वयं को अति विशिष्‍ट समझते हैं और यह मानते हैं कि उनका व्‍यक्तित्‍व, चाहे वह शारीरिक या मानसिक, सबसे उत्‍कृष्‍ट है। वो केवल अपनी प्रशंसा सुनने के आदी होते है अपनी आलोचना सुनने या दूसरों के द्वारा उनकी प्रशंसा न किए जाने या उनकी कोई कमी दर्शाने को वह अपना अपमान मानते हैं। अपनी कमी सामने आने पर वह आगबबूला हो उठते हैं। 

ऐसे व्‍यक्ति अपनी कमियों को नजरअंदाज करके दूसरों पर अपनी कमी या असफलता का आरोप लगा देते हैं। आत्‍म मोह की हद पार हो जाने की स्थिति में सभी को अपने कठोर नियंत्रण में रखना चाहते हैं। ऐसे लोगों में दूसरों के प्रति सहानुभूति या संवेदनाओं की कमी होती है। यहां तक कि उनके ऐसे व्‍यवहार के कारण उनके घरेलू व अन्‍य संबंध भी खराब होते हैं। औरों पर नियंत्रण रखने की उनकी भावना सनक की हद तक होती है। यदि वे किसी को अपने काबू में नहीं कर पाते तो इससे वे स्‍वयं को किसी और के अधीन या अपमानित अनुभव करते हैं। वे स्‍वयं को आदर्श व्‍यक्ति के रूप में देखते है। परंतु उनके दृढ़ व्‍यक्तित्‍व के मुखौटे के पीछे बहुत ही असहाय व्‍यक्तित्‍व छुपा होता है। उनके अचेतन मन में डर, ग्‍लानि, उदासी जैसी भावनाएं भरी हुई होती हैं। इन्‍हीं भावनाओं को दूर करने के लिए वे खुद को बहुत अधिक साहसी, सुदृढ़ दिखाते हैं।

लक्षण

ना‍रसिस्‍ट‍िक पर्सनैलि‍टी डिस्‍आर्डर के चिह्न और लक्षण की गंभीरता विभिन्‍न व्‍यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। मुख्‍य रूप से दिखाई देने वाले लक्षणों में निम्‍न शामिल हैं:

  • इनमें स्‍वयं को अत्‍यधिक महत्‍व देने की भावना होती है। इसके लिए यदि उन्‍हें दूसरे को नीचा या कमतर दिखाना हो तो वे बिल्‍कुल नहीं हिचकते;
  • दूसरों पर अपना अधिकार समझते हैं और इन्‍हें निरंतर प्रशंसा की जरूरत होती है;
  • ये अपनी कामयाबी और प्रतिभा को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं और ऐसे लोगों से दोस्‍ती रखते हैं जो उनके अनुसार उनके समान हो; 
  • बिना कोई खास उपलब्धि हासिल किए बगैर या पात्र न होने पर भी ये उम्‍मीद करते हैं कि सब उन्‍हें सर्वोकृष्‍ट माने;
  • सफलता, शक्ति, बुद्धिमत्‍ता, सुंदरता अथवा सब से बढ़‍िया साथी के बारे में उनका अपना एक काल्‍पनिक संसार होता है;
  • वह सबसे विशेष फेवर की उम्‍मीद करते हैं और चाहते हैं कि सभी लोग बगैर कोई सवाल किए उनकी आकांक्षा को पूरा करें;
  • अपनी वांछित चीजों के लिए वे दूसरों को लाभ उठाते हैं और बाद में उन्‍हें नकार देते हैं;
  • दूसरों की आवश्‍कताओं और भावनाओं को जानबूझ कर नजरअंदाज करते हैं;
  • अपने अलावा ये सभी से जलन रखते हैं मगर इन्‍हें ये लगता है कि सर्वोत्‍तम होने के कारण लोग उनसे जलन रखते हैं;
  • इनके बात करने का तरीका अहंकारी और अकड़ वाला होता है और ये धोखेबाज, ढीठ और कपट पूर्ण व्‍यवहार करते हैं;
  • इन्‍हें हर चीज सबसे बढ़‍िया चाहिए होती है जैसे सबसे अच्‍छी कार या दफतर यहां तक कि जीवनसाथी भी।

इस बीमारी से पीड़‍ित व्‍यक्ति अपनी आलोचना का सामना करने या वांछित व्‍यवहार या महत्‍ता न मिलने पर अधीर और क्रोधित हो जाते हैं। वे यह सोचना भी नहीं चाहते कि वो गलत भी हो सकते हैं या उनमें कोई कमी है इसीलिए वे उपचार के बारे में भी नहीं सोचते।

यह डिस्‍आर्डर पुरूषों के बजाय महिलाओं में ज्‍यादा देखा गया है और अकसर यह किशोरवय या युवावस्‍था के आरंभिक समय में होता है।

कारण

इस डिस्‍आर्डर का कोई ज्ञात कारण नहीं है। कुछ अनुसंधानकर्ता इसके लिए पैरेटिंग स्‍टाइल जैसे बच्‍चों की अधिक देखभाल करना या उनकी परवाह न करना, शारीरिक या मानसिक कमजोरी, बचपन में हुए शोषण या प्रताड़ना को इसका कारण मानते हैं। आनुवांशिकता और न्‍यूरोबायोलॉजी को भी इस डिस्‍आर्डर का कारण माना गया है।

ऐसे व्‍यक्ति को अपने जीवन में कई जटिलताओं या अन्‍य स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जैसे रिश्‍तों में आने वाली कठिनाइयां, कार्यस्‍थल अथवा स्‍कूल में समस्‍याएं आना, अवसाद और बेचैनी या कोई और शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं, शराब या अन्‍य ड्रग्‍स की लत, आत्‍महत्‍या के विचार आदि।

यह मजेदार बात है कि लोग अति‍शीघ्र और अनायास ही ऐसे व्‍यक्ति के मोहजाल या प्रेम में पड़ जाते हैं। अनुसंधान बताता है कि शुरुआती सात-आठ मुलाकातों में इनका रवैया बहुत ही सकारात्‍मक होता है। लोग उन्‍हें आकर्षक, आत्‍मविश्‍वासी, उदार, और व्‍यवस्थित समझते हैं मगर उनका असली रूप या मानसिकता बाद में पता चलती है।

रोकथाम

इस डिस्‍आर्डर का कोई विशिष्‍ट कारण न पता होने के कारण इसके रोकथाम का कोई सटीक तरीका भी नहीं है। परन्‍तु फिर भी बचपन में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या होने पर तुरंत उसका इलाज करके, बातचीत के तौर-तरीके सीखने के लिए फैमिली थेरेपीज में भाग लेकर, मनोविज्ञानियों अथवा समाजिक कार्यकर्ताओं से पैरेटिंग संबंधी सलाह लेकर इसकी रोकथाम की जा सकती है।

इस डिस्‍आर्डर का निदान मुख्‍यत: उसके लक्षणों से किया जाता है। इसके साथ ही शारीरिक जांच भी की जाती है जिससे किसी शारीरिक रोग का पता लगाया जा सके। इसके अलावा मनोविश्‍लेषण मूल्‍यांकन करने के लिए प्रश्‍नावली भर कर और अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसियेशन द्वारा डीएसएम-5 के जरिए भी इसका निदान किया जा सकता है।

उपचार

इस डिस्‍आर्डर में साइकोथेरेपी जिसे टॉक थेरेपी भी कहा जाता है अधिक प्रभावी होती है। कोई अन्‍य मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी स्थिति हाने पर दवाईयों का प्रयोग भी किया जाता है।

 

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